Tuesday, June 17, 2014

अपने फ़िर्ज में एक जगह

आज देखी मैंने , 
बिसलरी की ख़ाली बोतल ...
आधभरी थी , पर ढक्कन और इस्टीगर ने 
अब तक साथ ना छोड़ा था |

मन हुआ था की 
" भर दूँ, उसे ... नल के पानी से ..."
फिर कौन जान पायेगा ??
इसका पानी कहा से आये है ...
और शायद कोई नयी बोतल समझकर,
इसे भी अपने फ़िर्ज में एक जगह दें दे .. |

पूरा प्लान तैयार था, सोचे एक न्यूज़ पेपर भी साथ होगा |
तो ज्यादा प्रभावी लगेगा, मैं अपने मज़े और मनोरंजन में ||

मैं जो नज़र बचाए, कुछ कर गुजरने की उधेड़बुन में थी ...
की अब ज़रूर कोई तरक्की मेरी ना होकर भी मुझें हंसी देगी , आज |

जब उठी , तभी एक बच्चा वहाँ से गुजरा, और उस बोतल को देखकर ..
मुस्कुराया " इस्टीगर फाड़ा और उसका पानी गट कर गया ...
कुछ देर बैठा उसी बैंच पर, पैरों को हिलाते हुए " मुझे देखता रहा ..." |

पर मैं अब भी नहीं उद्दास थी , 
लगा चलो बिसलरी में उसका नाम लिखा था ...
और उसने उस नयी सी लगने वाली बिसलरी को 
अपनी प्लास्टिक की थैली में बड़ी बेदर्दी से फेका |

मैं मन ही मन सोचने लगे , 
काश मैं इसके लिए भी 
" एक फ़िर्ज खोज पाती ....." |
इतने में वो आँखों से ओझिल हो गया |
मैं वहाँ कुछ मायूस सी बैठी रहीं , थोड़ी देर ......

2 comments:

  1. निशब्द... रचना के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आपने! बहुत सच लिखा है अपने ..

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    1. धन्यवाद संजय भास्‍कर ज़ी |

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