Friday, June 6, 2014

तितलियों की जगह मक्खियों में

तितलियों की बैचेनी, 
मुझें कुछ - कुछ नज़र आ रहीं है |
नाराजगी का बोझ समाले नहीं समल रहा ,
और अब जूझना भी है ...विपरीत हवाओं के रुख से |

उन पर पड़ते, इसके दूरगामी असर भयावह है |
तितलियों की आपसी लड़ाई, चीड़ों में उमंग भर रहीं है ...

तितलियों के पंख नोच ली इस लहर ने , 
जो वो आसमान में उड़ा करती थी, कभी |
और हर उडान लेकर,
घमण्ड से ज़रा और भारी होती थी |
लेकिन अब अपने नाजुक पंखों को छेदकर,
कुछ यूँ हीं जमीन में ओंधे मुँह पड़ी है |

तितलियों ने जो पराग डाले थे,
वो कमल बन खिल गए है |
तितलियों का भैसों सा हाल है
जु-गाली कर -कर परेशान है |

अपने पतन को रोक सकते है ??
कुछ आहुतियां तितलियों को देनी होगी, |
देश भक्ति की मशाल,
हाथ सेकने वालो में नहीं बंटेगा |
कुछ कर दिखाओं वरना हाथ हीं तो जलाओं |
बहुत हुई तुम्हारी भिनभिनाहट ,
तुम्हें कोई नहीं सुनता, जो सुनता है समझ नहीं पाता |
तुम तितलियों की जगह मक्खियों में बदल चुकें हो ...

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