बहुत अच्छा.. होता ,
जो रात का इंतजार ना होता ..
तो, जो जलन - धुप ने दी है ..
उसे ही जीवन बना लेते |
यूँ तो ये तपिश ,
अपनी है, जो किसी
पराये ने दे दी है ....
सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
क्योंकि प्यार का नाम लेना ,
अब अच्छा नहीं लगता |
ना कोई मोल है, इन बातों का ...
जो किसी बढ चले क़दमों को ..
बंद ना पाये ,
फीके पकवान से ये शब्द ....
पर हमने तो ढूंड के पाए है |
आज जो किसी को रश ना आये, तो क्या ??
कभी तो ये, प्रतिदिन उनकी भोजन का अंग होता था |