Thursday, December 8, 2011

तुझे पाने की चाहत में ....

तुझे पाने की चाहत में ,
मैं खुद को खोती सी जा रही हु |
तक़दीर लिखने की चाहत में ,
बस जख्म ही किये जा रही हु |

दोनों हाथो को फैलाकर भी ,
कुछ नहीं मिलता मुझे ..
मैं बस दिल के किये जुर्मो की ,
सजा पाये.... जा रही हु |

कर ले यकिन अब मेरा ..
मैं तो अब तेरी यादो के सहारे
ही ........जिये जा रही हु |

ये आंसू ना सोच नकली है |
क्योंकि तेरी हर यादो से
...... छनकर ही निकली है |

8 comments:

  1. उन टूटते रिश्तों का मंजर हमने देखा है
    सपनों की उजडती दुनियाँ को हमने देखा है
    चाहत का नाम दर्द है लोगों से सुनते थे
    गहरे घावों को रिसते हमने देखा है
    मोतियों को आज तक सहेज रखा था
    आँखों से गिरते औ बिखरते हमने देखा है
    नादान थे हम बिक गए नजरों में आपके
    नजरों के भावों को बदलते हमने देखा है
    न ख्वाब में अंदाज़ था जिस बात का हमें
    वो सब हकीकत में गुजरते हमने देखा है
    अब मौत की दुआ है उस परवर दिगार से
    पल पल को जीते और मरते हमने देखा है
    ए जाने वाले तू ज़रा फिर से पलट के देख
    इक दर्द से खुदको तडफते हमने देखा है
    आसान तुमको है कि मुझे भूल जाओगे
    कोशिस में पर खुद को बिखरते हमने देखा है
    लिक्खा नहीं है एक अक्षर भी किताब में
    पन्नों को यूँ अकसर पलटते हमने देखा है
    R.N. Soni 'अक्षर'

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  2. bahut acha likha hai ji....appne

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  3. aaj dil ne tumko u likhte hue paya hai
    khudakare ki tum likhte raho aur
    hum u hi padhte rahe !

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  4. hum khawab ke unko haqkeekat me badlna chahte hai !
    wo hai ki mere derkhwast ko sunna nahi chahte hai!!
    koi to bataye ki hum unki waado per kaise aitbaar kare !!!
    wo to akser wado to tod ker hi hame rulaya kerte hai!

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  5. वाह।
    क्‍या बात है....

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  6. दोनों हाथो को फैलाकर भी ,
    कुछ नहीं मिलता मुझे ..
    मैं बस दिल के किये जुर्मो की ,
    सजा पाये.... जा रही हु |
    हाथ फ़ैलाने से कब इस जहां में किसी को मिला है... जीवन तो नियति चक्र के अनुरूप चलता है!
    लिखते रहिये... जीते रहिये अनजिए पलों को!
    शुभकामनाएं!

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